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Kya Hai ISRO’s satellite INSAT-3DS?: क्या है ISRO का नया सैटेलाइट INSAT-3DS, जानें कैसे करेगा काम, क्यों खुश हैं मौसम वैज्ञानिक
ISRO geosynchronous satellite INSAT-3DS in Hindi: इन्सैट-3डीएस मौसम की सटीक जानकारी देने में सक्षम होगा। इसरो इसे जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में तैनात करेगा। यह एक तुल्यकालिक उपग्रह है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक बार फिर अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास रचने के लिए तैयार है। इसरो मौसम निगरानी जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट INSAT-3DS लॉन्च करने वाला है।
इस उपग्रह को हिंदी में समकालिक उपग्रह कहा जाता है। ऐसे उपग्रह पृथ्वी के सापेक्ष घूमते हैं, जिसके कारण वे मौसम की बहुत सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम होते हैं।
INSAT-3DS को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 5.30 बजे लॉन्च किया जाएगा. इसरो ने तैयारी पूरी कर ली है.
INSAT-3DS कहाँ स्थापित किया जाएगा?
उपग्रह को जीएसएलवी एमके II रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। उड़ान भरने के करीब 20 मिनट बाद इस उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में तैनात किया जाएगा।
INSAT-3DS के लॉन्च से मौसम वैज्ञानिकों में खुशी की लहर है. अब उन्हें मौसम संबंधी सटीक जानकारी मिल सकेगी। आखिरी बार इस श्रृंखला के उपग्रह INSAT-3DR को वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था।
INSAT-3DS अन्य उपग्रहों से भिन्न क्यों है?
इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने कहा है कि INSAT-3DS का परीक्षण 10 नवंबर 2023 से शुरू हुआ। INSAT-3DR में 6-चैनल इमेजर है।
INSAT-3DR 19-चैनल साउंडर से लैस है, जिससे मौसम की सटीक जानकारी देना आसान होगा।
यह आसमान से धरती को छुएगा. यह सैटेलाइट इसरो को कई महत्वपूर्ण डेटा उपलब्ध कराएगा, जिसका इस्तेमाल बचाव अभियानों में भी किया जा सकता है।
क्या है INSAT-3DS का काम
INSAT-3DS का वजन 2274 किलोग्राम है। जब यह अपनी कक्षा में पहुंच जाएगा और स्थापित हो जाएगा, तब पृथ्वी विज्ञान मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) और मौसम पूर्वानुमान केंद्र को डेटा भेजना शुरू कर देगा। इस पर वैज्ञानिक 24 घंटे नजर रखेंगे।
इस सैटेलाइट के जरिए समुद्री अशांति की स्थिति पर आसानी से नजर रखी जा सकेगी, हवाओं और बादलों की स्थिति पर भी नजर रखी जा सकेगी। भारतीय राष्ट्रीय केंद्र के माध्यम से इसके सिग्नल कई विभागों को विश्लेषण के लिए भेजे जाएंगे।
INSAT-3DS को 51.7 मीटर लंबे रॉकेट से भेजा जा रहा है. इसमें इमेजर पेलोड, साउंडर पेलोड, डेटा रिले ट्रांसपोंडर, सैटेलाइट एडेड सर्च और रेस्क्यू ट्रांसपोंडर आदि शामिल हैं।
वैज्ञानिक इनका उपयोग बादलों, कोहरे, बारिश और बर्फ का अध्ययन करने के लिए करते हैं। यह बहुत आधुनिक है इसलिए इस उपग्रह से समुद्र विज्ञान का भी अध्ययन किया जा सकता है।
इसके सक्रिय होने के बाद भारत की विदेशी मौसम एजेंसियों पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। इस बात से भारतीय वैज्ञानिक बेहद खुश हैं.
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