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Indrayan kya hai: इन्द्रायण क्या है, इसके औषधीय गुण, फायदे और नुकसान
इन्द्रायण
आयुर्वेद में इंद्रायण का प्रयोग विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसकी तीन जातियां पाई जाती हैं, छोटी इन्द्रायण, बड़ी इन्द्रायण और जंगली इन्द्रायण। यह एक ऐसा हर्ब हैं जहां हर प्रकार के इन्द्रायण में 50 से 100 तक फल लगते हैं। इस अनजाने हर्ब के बारे में विस्तार जानें:-
इन्द्रायण क्या है? (Indrayan kya hai)
इन्द्रायण का प्रयोग भारतवर्ष में प्राचीनकाल से ही हो रहा है। चरक व सुश्रुत-संहिता में इसका उल्लेख कई स्थानों पर प्राप्त होता है। इसके फल को कब्ज के उपचार के लिए तीक्ष्ण विरेचनार्थ प्रयोग किया जाता है। यह पैत्तिक विकार, बुखार और पक्वाशय के कृमियों पर विशेष उपयोगी है। इसकी जड़ का प्रयोग जलोदर, कामला (पीलिया), आमवात (गठिया) एवं मूत्र सम्बन्धी बीमारियों के लिए फायदेमंद माना गया है।
इन्द्रायण का औषधीय गुण (Medicinal properties of Indrayan)
इंद्रायण के फायदों के बारे में जानने से पहले इसके औषधीय गुणों के बारे में जानना भी बहुत आवश्यक है। जैसा कि आपको पता ही हैं, कि इंद्रायण तीन तरह की होती है। हर तरह के इंद्रायण के औषधीय गुण भिन्न होते हैं-
- इन्द्रायण: इंद्रायण प्रकृति से तीव्र रेचक, कटु, तीखा, गर्म, लघु, सर, पित्तकफ से आराम दिलाने वाला, कामला या पीलिया, प्लीहारोग, पेट के रोग, सांस संबंधी बीमारी, खांसी, कुष्ठ, गुल्म या वायु का गोला, गांठ, व्रण या घाव, प्रमेह या डायबिटीज, विषरोग, मूढ़गर्भ (Obstructed labour), गलगण्ड या कंठमाला, आनाह (Flatulence), अपची, दुष्टोदर, पाण्डु (Anaemia), आमदोष या गठिया, कृमि, अश्मरी या पथरी, ज्वर तथा श्लीपद (Filaria) जैसी समस्याओं के लिए लाभदायक है। इसके जड़ एवं पत्ते बहुत कड़वे होते हैं। इसका फल तीखे, सूजन को कम करने वाला, प्रतिविष, विरेचक, कृमि को निकालने में उपयोगी, रक्त को शुद्ध करने वाला, कफनिसारक, मधुमेह यानि डायबिटीज को नियंत्रित करने में, बुखार से कष्ट से निदान दिलाने में मददगार होता है।
- जंगली इंद्रायण: जंगली इन्द्रायण प्रकृति से कड़वा, तीखा, वात को कम करने वाला, पित्तकारक, दीपन (Stomachic) तथा रुचिकारक होता है। इसकी मूल या जड़ वामक या उल्टी एवं विरेचक होती है। इसकी फलमज्जा तिक्त, कृमिनाशक, ज्वरघ्न, कफनिसारक, यकृत् के लिए बलकारक,एवं विरेचक होती है। इसके बीज शीतल होते हैं।
- लाल इंद्रायण (बड़ी इंद्रायण): यह कटु या कड़वा, तिक्त या तीखा, गर्म, लघु, कफपित्तशामक तथा सारक होता है। इसका उपयोग कण्ठरोग, कामला या पीलिया, प्लीहा स्प्लीन रोग, पेट के रोग, श्वास या सांस संबंधी बीमारी, कास, कुष्ठ, गुल्म, ग्रन्थि (Grandular swelling), व्रण, प्रमेह, मूढगर्भ (Obstructed labour), आमदोष और श्लीपद (Filaria) आदि के इलाज में किया जाता है।
इन्द्रायण के फायदे और उपयोग (Uses and Benefits of Indrayan)
इंद्रायण में पौष्टिकारक गुण होते है, और ये औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद है जानें
बालों को काला करने में लाभदायक है इंद्रायण
आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण का सबसे अधिक प्रभाव बालों पर ही पड़ता है, जिसके कारण असमय ही बाल सफेद हो जाते हैं। इन्द्रायण बीज के तेल को सिर पर लगाने से अथवा 3-5 ग्राम इन्द्रायण बीज चूर्ण को गाय के दूध के साथ उपयोग करने से बाल काले हो जाते हैं।
सिरदर्द से आराम दिलाये इंद्रायण
दिन भर के तनाव के कारण सिर में दर्द होने लगता है तो इन्द्रायण फल के रस या जड़ के छाल को तिल के तेल में उबाल लें, और उस तेल को मस्तक पर मलने से मस्तक पीड़ा (बार-बार होने वाले सिरदर्द) से लाभ मिलता है।
नाक में फुंसियों के उपचार के लिए इन्द्रायण का प्रयोग
अगर आप बार-बार नाक में फुंसियों के निकलने के कारण परेशान हैं तो इन्द्रायण फल से सिद्ध नारियल तेल को लगाने से नाक की फुंसियाँ ठीक हो जाती है।
बहरेपन के इलाज में फायदेमंद इंद्रायण
इन्द्रायण के पके हुए फल को या उसके छिलके को तेल में उबाल लें, और छानकर 2-4 बूँद कान में टपकाने से बाधिर्य (बहरेपन) में लाभदायक होता है। इसके साथ ही, लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल तेल के साथ गर्म करके कर्णपाली व्रण (कान के घाव) पर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
दाँत के कीड़े को मारने में लाभकारी इंद्रायण
बच्चों में दांत में कीड़ा होने की समस्या अधिक होती हैं। इसके इलाज के लिए इन्द्रायण के पके हुए फल की धूनी (दाँतों में) देने से कीड़े मर जाते हैं।
मुँह संबंधी समस्याओं के इलाज में फायदेमंद इंद्रायण
इन्द्रायण तथा पटोल आदि द्रव्यों से पटोलादि काढ़े से गरारा (कुल्ला) करने से अथवा 10-20 मिली पटोलादि काढ़े में शहद मिलाकर उपयोग करने से मुखरोगों में लाभ होता है।
खांसी ठीक करने में इंद्रायण का उपयोग
इन्द्रायण के फल में छेद करके उसमें काली मिर्च भरकर छेद बंद कर धूप में सूखने के लिए रख दें या आग के पास भूभल (गर्म राख) में कुछ दिन तक पड़ा रहने दें, उसके बाद फल से काली मिर्च निकाल लें। काली मिर्च के 5 दाने प्रतिदिन शहद तथा पीपल के साथ सेवन करने से फायदा मिलता है।
सांस संबंधी बीमारियों में लाभदायक इंद्रायण
अगर सांस संबंधी बीमारी से परेशान हैं तो इन्द्रायण फल को सुखाकर चिलम में रखकर पीने से सांस लेने में आसानी होती है।
पेट की बीमारियों के इलाज में लाभदायक हैं इंद्रायण
पेट संबंधी कई बीमारियों की परेशानी को दूर करने में इंद्रायण का औषधीय गुण लाभदायक होता है
- इन्द्रायण का मुरब्बा खाने से पेट की बीमारी ठीक हो जाती है।
- इन्द्रायण के फल में सेंधानमक और अजवायन भर कर धूप में सुखा लें। अजवायन को गर्म पानी के साथ उपयोग करने से पेचिश तथा पेटदर्द से आराम मिलता है।
- इन्द्रायण के ताजे फल के 5 ग्राम गूदे को गर्म जल के साथ या 2-5 ग्राम सूखे गूदे को अजवायन के साथ खाने से पेचिश में लाभ मिलता है।
- इन्द्रायण फल के गूदे को पीसकर गर्म करके पेट पर बांधने से आंत के कीड़े मर जाते हैं।
विरेचन जैसा काम करता है इंद्रायण
इन्द्रायण की फल (मज्जा) को पानी में उबालें और उसके बाद उसको छानकर गाढ़ा करके उसकी छोटी-छोटी चने के समान गोलियां बना लें। 1-2 गोली को ठंडे दूध के साथ लेने से सुबह विरेचन यानि पेट खाली हो जाता है।
जलोदर के इलाज में लाभकारी इंद्रायण
इन्द्रायण फल के गूदे में बकरी का दूध मिलाकर पूरी रात पड़ा रहने दें। सुबह इस दूध में थोड़ी-सी चीनी मिलाकर रोगी को पिला दें। कुछ ही दिन पिलाने से जलोदर में फायदा होता है।
मूत्रीय अन्सयम के कष्ट के निदान में लाभदायक है इंद्रायण
इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीस-छानकर, 5-10 मिली की मात्रा में आवश्यकतानुसार पीने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र की रुकावट) में फायदा होता है। लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला, सबको मिलाकर काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़े में शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से मूत्र करते वक्त दर्द होने या रूक रूक कर होने की समस्या से भी लाभ मिलता है।
स्तनों की सूजन के उपचार में लाभकारी है इन्द्रायण
यदि किसी रोग के कारण स्तनों में सूजन आ गई हो तो इन्द्रायण की जड़ को पीसकर स्तनों पर लेप लगाने से सूजन से राहत मिलती है।
मासिक धर्म संबंधी समस्याओं के उपचार में लाभकारी है इन्द्रायण
3 ग्राम इंद्रवारुणी के बीज और 5 काली मिर्च को पीसकर 200ml पानी में काढ़ा बना लें। जब पानी एक चौथाई शेष रह जाए तो उसे छानकर पीने से मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभ मिलता है।
योनि दर्द के उपचार में लाभदायक है इन्द्रायण
इन्द्रायण की जड़ को पीसकर योनि पर लेप करने से योनि दर्द से शीघ्र राहत मिलती है।
उपदंश में लाभदायक है इन्द्रायण
100 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 500 मिलीलीटर अरंडी के तेल में पकाकर अलग रख लें। 15 मिलीलीटर तेल को गाय के दूध के साथ सुबह-शाम पीने से उपदंश आदि रोगों में लाभ मिलता है। तेल को शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें और प्रयोग करें। इसके अलावा इन्द्रायण की जड़ के टुकड़ों को पांच गुना पानी में उबालें, तीन भाग पानी शेष रहने पर इसे छान लें, इसमें बराबर मात्रा में चीनी मिलाकर शर्बत बनाकर पिलाने से उपदंश और गैस के दर्द में आराम मिलता है।
सुखी प्रसव के उपचार में लाभदायक है इन्द्रायण
इन्द्रायण की जड़ को पीसकर गाय के घी में मिलाकर योनि पर लेप करने से शीघ्र प्रसव में लाभ होता है। इन्द्रायण के फल के रस में रुई भिगोकर योनि में रखने से प्रसव सुखपूर्वक होता है। इन्द्रायण की जड़ को पीसकर गर्भवती स्त्री के बढ़े हुए पेट पर लगाने से पेट अपनी जगह पर आ जाता है।
सूजाक के उपचार में लाभकारी है इन्द्रायण
त्रिफला, हल्दी और लाल इन्द्रायण की जड़ का काढ़ा बनाकर 30 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीने से सूजाक रोग में लाभ होता है।
गठिया के दर्द से राहत दिलाता है इन्द्रायण
अगर आप गठिया के दर्द से हमेशा परेशान रहते हैं तो इंद्रायण का प्रयोग इस प्रकार करना फायदेमंद है-
- इन्द्रायण की जड़ और पीपल का चूर्ण बराबर मात्रा में गुड़ के साथ मिलाकर 2-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से वात रोग से राहत मिलती है।
- 100 ग्राम इन्द्रायण फल के गूदे में 10 ग्राम हल्दी और सेंधा नमक मिलाकर बारीक पीस लें। जब पानी सूख जाए तो चौथाई ग्राम (250 मिलीग्राम) की गोलियां बना लें। गठिया रोग से पीड़ित रोगी को, जिसकी सूजन और दर्द बहुत ज्यादा हो, एक-एक गोली सुबह और शाम दूध के साथ देने से, ही दिनों में ठीक होकर चलने-फिरने लगता है।
फोड़े-फुन्सियों के उपचार में लाभदायक है इन्द्रायण
इंद्रायण के औषधीय गुण फोड़े-फुंसियों के उपचार में लाभकारी होते हैं। सर्दी और गर्मी के कारण नाक में फोड़ा हो जाए जिसमें सड़ा हुआ मवाद निकलता हो तो इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से लाभ होता है। इसके अलावा लाल इन्द्रायण और बड़ी इन्द्रायण की जड़ को बराबर पीसकर लेप बनाकर फोड़ों पर लगाने से लाभ होता है।
विचर्चिका या खुजली की समस्कोया करे दूर करता है इंद्रायण
इन्द्रायण फल का पेस्ट करके कमजोर यानि जीर्ण तथा तीव्र विचर्चिका या छाजन (खुजली) में लाभ होता है।
मिर्गी के उपचार में लाभदायक है इन्द्रायण
मिर्गी या मिर्गी रोग में इन्द्रायण मूल चूर्ण को नाक से (दिन में तीन बार) लेने से लाभ होता है।
सूजन को कम करने में लाभकारी है इन्द्रायण
इन्द्रायण की जड़ को सिरके में पीसकर गर्म करके सूजन वाले स्थान पर लगाने से सूजन कम हो जाती है।
प्लेग के उपचार में उपयोगी है इन्द्रायण
इन्द्रायण की जड़ की गांठ (इसकी जड़ में गांठें होती हैं) (यदि संभव हो तो सबसे कम या सातवीं संख्या लें) को ठंडे पानी में घिसकर प्लेग की गांठ पर दिन में दो बार लगाएं और डेढ़ से तीन ग्राम तक लेना चाहिए। इसे पीने के लिए भी दिया जाए. इस प्रयोग से लाभ होता है.
बुखार से राहत दिलाने में उपयोगी है। इन्द्रायण
इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण में एसेंशियल ऑयल मिलाकर शरीर पर मालिश करने या लगाने से बुखार से राहत मिलती है।
बिच्छू काटने के कष्ट से राहत दिलायें इंद्रायण
6 ग्राम इन्द्रायण फल का उपयोग करने से बिच्छू के काटने से वेदना तथा जलन आदि विषाक्त प्रभावों से फायदा मिलता है।
सांप के काटने के कष्ट से राहत दिलाये इंद्रायण
3 ग्राम बड़ी इन्द्रायण के मूल चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर खाने से सर्पदंशजन्य वेदना तथा दाह आदि विषाक्त प्रभावों को कम करने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही, इन्द्रायण पत्ते के रस (5 मिली) एवं जड़ के काढ़ा (10-30 मिली) का सेवन करने से सर्पदंश जन्य विषाक्त प्रभावों से फायदा मिलता है।
इन्द्रायण का उपयोगी हिस्सा (Useful Parts of Indrayan)
आयुर्वेद के अनुसार इंद्रायण का औषधीय गुण इसके इन भागों को इस्तेमाल करने पर सबसे अधिक मिलता है-
पत्ता, जड़, फल और बीज।
इन्द्रायण का इस्तेमाल कैसे करें (How to Use Indrayan)
अगर आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए इंद्रायण का उपयोग करना चाहते हैं तो अच्छा होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 0.125-0.5 ग्राम फल का चूर्ण या 1 ग्राम जड़ का चूर्ण ले सकते हैं।
इन्द्रायण सेवन के दुष्प्रभाव (Side Effect of Indrayan)
गर्भिणी, स्त्रियों, बच्चों एवं दुर्बल व्यक्तियों में इसका प्रयोग यथा संभव नहीं अथवा सावधानी से करना चाहिए।
कहां पाया या उगाया जाता है इन्द्रायण (Where is Indrayan Found or Grown)
इन्द्रायण की पूर्ण भारतवर्ष में, विशेषत बालुका मिश्रित भूमि में स्वयंजात वन्यज या कृषिजन्य बेलें पाई जाती हैं।
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