वन नेशन, वन इलेक्शन, क्या हैं? क्या ये भारत में संभव हैं? फायदे और नुकसान?

एक देश एक चुनाव क्या है:-

क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहाँ हर पांच साल में लोकसभा चुनाव होते हैं। इसके अलावा, राज्यों में भी समय-समय पर विधानसभा चुनाव होते हैं। इन चुनावों के कारण देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है, और सरकारों को अपना कार्यकाल पूरा करने में परेशानी होती है। इस समस्या को दूर करने के लिए, कुछ लोग ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी एक देश, एक चुनाव की वकालत कर रहें हैं।

इस प्रणाली में, पूरे देश में एक ही समय पर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं। इससे राजनीतिक स्थिरता आएगी, और सरकारों को अपना कार्यकाल पूरा करने में आसानी होगी। साथ ही, इससे मतदाताओं को भी एक ही चुनाव में अपने प्रतिनिधि चुनने का मौका मिलेगा।

वन नेशन, वन इलेक्शन, क्या हैं?
वन नेशन, वन इलेक्शन

दुनिया के कई देशों में, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, मैक्सिको और कनाडा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की प्रणाली लागू है। इन देशों में, यह प्रणाली सफलतापूर्वक काम कर रही है।

भारत में भी ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की प्रणाली को लागू करने की बात कई बार उठी है। हाल ही में, सरकार ने इस प्रणाली की संभावनाओं का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया है। ये गठन भारत सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की संभावनाओं पर विचार करने के लिए एक कमेटी की घोषणा की गई है। यह कमेटी सुझाव देगी कि क्या देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराए जा सकते हैं। या नहीं इस बीच, केंद्र सरकार 18-22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है।

वन नेशन, वन इलेक्शन: क्या ये संभव हैं

अपनी केंद्र सरकार ने साल 2015 में चुनाव आयोग, नीति आयोग और विधि आयोग से इस बारे में जानकारी माँगी थी कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ क्या संभव है? इसके बाद तीनों एजेंसियों ने अपने जवाब सरकार को सौंप दिए थे। इस विषय पर सभी एजेंसियों ने कहा था कि हाँ ये बिल्कुल संभव है। एजेंसियों के इस फेसले से तो लगता है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पूर्णरूप से संभव है और इस पर चुनाव आयोग ने कहा था कि इसके लिए संविधान में कुछ परिवर्तन करने होगे। जनप्रतिनिधित्व कानून में कुछ परिवर्तन करने होंगे। अतिरिक्त ईवीएम, वीवीपैट खरीदने या बनवाने के लिए अतिरिक्त धनराशि चाहिए होगी और एक साथ सारे चुनाव कराने के लिए जो मैन जोश, शक्ति चाहिए वो बढ़ानी होगी|

इसे 2024 में भी कराया जा सकता हैं

पिछले चुनाव साल 2018 के आँकड़ों के मुताबिक, चुनाव आयोग के पास 25 लाख ईवीएम-वीवीपैट के लगभग हैं। फिलहाल इससे भी काम चल सकता है, क्योंकि अभी पूरे देश में एक साथ चुनाव नहीं होते हैं। अगर पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की बारी आएगी तब तो हर मतदान केंद्र पर दो-दो ईवीएम और 2-2 वीवीपैट एक साथ लगाने पड़ेगे।

और ईवीएम-वीपीपैट तुरंत ऑर्डर देने पर बनाए नहीं जा सकते। उसके लिए तो समय लगेगा। अभी जितने भी ईवीएम-वीवीपैट पास हैं, उससे दोगुने यानि 50 लाख ईवीएम-वीवीपैट की जरूरत होगी। इस सीमा तक पहुँचने में एक से दो साल लग जाएँगे। वहीं, उनकी ट्रेनिंग से लेकर हैंडलिंग तक बड़ी संख्या में मैनपॉवर की जरूरत होगी, जिसकी व्यवस्था करनी पड़ेगी। इसे ये साबित होता है की ये 2024 में तो संभव नही हैं।

फायदे और नुकसान

न नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में आने वाली बातें

  • पैसे और समय की बचत: एक साथ चुनाव कराने से बहुत सारे पैसे बचेंगे क्योंकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव होने वाले चुनाव समाप्त हो जाएँगे। इसके साथ ही समय भी बचाएगा, क्योंकि सरकार को पाँच साल के भीतर कई चुनावी चक्र से होकर नहीं गुजरना पड़ेगा। ऐसे में सरकार को शासन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अधिक समय मिलेगा।
  • सही उम्मीदवार और पार्टी का चुनाव: एक साथ चुनाव मतदाताओं के लिए उम्मीदवारों को चुनना आसान होगा, क्योंकि वे एक ही समय में राष्ट्रीय और राज्य सरकारों के लिए मतदान करेंगे। इससे मतदाताओं को यह तय करने में मदद मिलेगी कि किस उम्मीदवार वोट देना है।
  • संघीय प्रणाली होगी मजबूत: एक साथ चुनाव संघीय प्रणाली को मजबूत करेगा, क्योंकि यह राज्यों को राष्ट्रीय राजनीति में अधिक कहने का अधिकार देगा। यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि सभी राज्यों के हितों का राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व हो।
वन नेशन, वन इलेक्शन, क्या हैं?
वन नेशन, वन इलेक्शन,

वन नेशन, वन इलेक्शन के खिलाफ जाने वाली बातें:

एक साथ चुनाव कठिन काम: एक साथ चुनाव कराना मुश्किल होगा, क्योंकि इसके लिए संविधान में संशोधन और केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच समन्वय की आवश्यकता होगी। यह एक जटिल और समय लगने वाली प्रक्रिया होगी।

मतदान प्रतिशत में गिरावट : एक साथ चुनाव मतदान में गिरावट का कारण बन सकता है, क्योंकि लोग अपने स्थानीय प्रतिनिधियों के लिए मतदान नहीं कर रहे होंगे तो वे कम प्रेरित हो सकते हैं। यह एक वैध चिंता है और इसे एक साथ चुनाव लागू किए जाने पर सावधानी से संबोधित करने की आवश्यकता होगी।

राष्ट्रीय दलों को हो सकता है फायदा : राष्ट्रीय दलों के पास क्षेत्रीय दलों की तुलना में अधिक संसाधन, नाम और पहचान है। यह उन्हें एक साथ चुनावों में फायदा दे सकता है, क्योंकि वे अधिक प्रभावी ढंग से प्रचार कर सकते हैं, और फायदा उठा सकते है।

अंततः, एक साथ चुनाव कराने या न कराने का निर्णय एक राजनीतिक निर्णय है। सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी पक्षों पर सावधानीपूर्वक विचार करना होगा। इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों का एक साथ आना भी जरूरी है. हालांकि इसे आगामी लोकसभा चुनाव यानी 2024 से लागू किया जाना चाहिए, और फिलहाल यह संभव नहीं दिख रहा है.

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